सोमवार, 27 सितंबर 2010

कबीर सहाब


मन फूला फूला फिरे जगत में केसा नाता रे ॥ उंचा महल अजब रंग बगला,साई की सेज वहां लगी फूलन की ॥
माता कहे यह पुत्र हमारा ,बहिन कहे वीर मेरा । तन मन धन सब अर्पन कर वह, सुरत सम्हार परू पइयॉ सजन की
भाई कहै यह भुजा हमारी ,नारि कहै नर मेंरा ॥ कहै कबीर निर्भय होय हंसा, कुजी बतादयो ताला खुलन की ॥
पेट पकरि के माता रोवै ,बाहि पकरि के भाई ।
लपट झपटि के तिरिया रौवे ,हंस अकेला जाई ॥ ॥ ंं५॥
जब लग जीवै माता रोवै ,बहिन रोवै दस मासा । हमन है इद्गक मस्ताना ,हमन को होद्गिायारी क्या ।
तेरह दिन तक तिरिया रौवे फेर करे धर बासा ॥ रहे आजाद या जग से, हमन दुनिया से यारी क्या ॥
चार गजी चरगजी मंगाया ,चढा काठ का धोडी । जो बिछुडे है पियारे से , भटकते दर बदर फिरते
चारो कोने आग लगाया फूक दियों जस होरी ॥ हमारा यार है हम में हमन को इतिजारी क्या ॥
हाड जरै जस लाकडी को ,केस जरै जस घासा। खलक सब नाम अपने को हमने दुनिया से यारी क्या ।
सोने ऐसी काया जरि गई ,कोई न आयो पासा ॥ हमन गुर नाम साचा है हमन दुनिया से यारी क्या ।
घर कर तिरिया ढूढन लागी, ढूढि फिरी चहु देखा । न पल बिछुडे पिया हम से,न हम बिछुडे पियारे से
कहे कबीर सुनो भाई साधो ,छोडो जग की आद्गाा । उन्ही से नेह लागी है, हमन को बेकरारी क्या ॥

॥३॥ कबीर इद्गक का माता दुई को दूर कर दिल से ।
मानत नही मन मोरा साधो , मानत मन मोरा रे॥ जो चलना राह नाजुक है हमन सिर बोझ भरी क्या ॥
बार बार मे कहि समुझावे ,जग में जीवन थोरा रे ।
या काया को गर्भ न कीजै क्या सावर क्या गोरे रे ॥
बिना भक्ति तन काम न आवे, कोटि सुगधि चभोरा रे ।
या माया जनि देखि रे भुलौ ,क्या हाथी क्या घोडा रे ॥